शनिवार, 2 अगस्त 2008

सौभाग्य मेरी मात्रभूमि का यही बना रहे राष्ट्र एकता रहे हर कदम मिला रहे हर कदम में सत्य हो हर कदम में प्यार हो देश के लिए यहाँ हर कदम taiyar हो....

ये बतन ये जमी हम भुला न पायेंगे ..
हम बतन की राह पर सर कटा जायेंगे
जन्मभूमि कर्मभूमि ये हमारी मात्रभूमि
हम बतन है हमारे दिलो की दास्तान

जग उठी है हमारे दिलो की बंदगी
हिल उठी है पाप से ये हमारी जमी
जब कभी आन पर आंच कोई आएगी
मात्रभूमि देश भक्त को खरा पाएगी

सीच कर खून से इस जमी को कभी
देश भक्त ने यहाँ सर कटाया कभी
अंग्रेज भी हम बतन को झुका न पाये थे
शहीद देश भक्तो ने अपने सर कटाए थे

बज उठी है हमारे दिलो की घंटिया
सरफरोसी दिलो में थन चुकी है बाजियां
देश भक्त कर्मवीर सर नही झुकायेंगे
मात्रभूमि के लिए अपने सर कटायेंगे

सौभाग्य मेरी मात्रभूमि का यही बना रहे
राष्ट्र एकता रहे हर कदम मिला रहे
हर कदम में सत्य हो हर कदम में प्यार हो
देश के लिए यहाँ हर कदम taiyar हो......



कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"

पाठको से प्रार्थना है की क्या यह कविता किसी पाठ्यक्रम मे शामिल हो सकती है यदि हां तो कृपया उचित स्तर पर सहयोग व् सुझाव देने की कृपा करे.... मै आपका हमेशा आभारी रहूँगा...

कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"

कोई टिप्पणी नहीं: