इस कदर मिलेगी मौत
ऐसा न कभी सोचा था
जिंदगी की हर घरी को
सावन की तरह देखा था……………..
आयी थी बहार चमन मे
bahare tabbsum लेकर
हमने तो हर फुल को
कलियों की तरह देखा था………………
आया हमारी जिंदगी मे
जो कोई मेहमान बनकर
हमने तो हर शख्स को
मसीहा की तरह देखा था……………
आसियाने में हमारे कोई
आया अगर आसना बनकर
हमने तो उस शख्स को
शःन्साह की तरह देखा था…………….
मसरूफ थे हम हर घरी
अपनी दुनिया के वास्ते
कल इसी दुनिया को
अपना घर जलाते देखा था………………
पनाह दी जिस शख्स को
हमने आलमपनाह बनकर
आज उसी शख्स ने हमे
gairo की तरह देखा था………………
ऐसा जीना मौत से भी
बदतर है दोस्तों
आज मेने खुद को
अपनी अर्थी सजाते देखा था………………
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
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