बुधवार, 13 अगस्त 2008

मेरी कविता "बच्चे" [दुनिया के सभी बच्चौ के लिए तथा अपने pujyaniya माता पिता के नाम समर्पित]

ये बच्चे कितने अच्छे है
सारी दुनिया मे सच्चे है
भगवान् भी इनकी पुजा करते
प्यार का सागर बच्चे है

इनके कोई न अपने होते
सबसे ये करते है प्यार
नही जानते भेदभाव ये
करते नही ग़लत ब्यवहार

हिंदू मुस्लिम ये क्या जाने
सिक्ख इसाई ये ना जाने
राम रहीम को क्या पहचाने
निस्वार्थ भाव के बच्चे है

पाप पुण्य की बात को छोरो
अच्छा बुरा इनसे न जोडो
बैर भाव की बात दूर है
भविष्य देश का बच्चे है

अपना पराया जात पात सब
दुनिया की सौगात बात सब
हम सिखलाते इन्हें प्यार से
शिक्षा सब लेते बच्चे है

बात दिया हमने वर्गो में
मासूम शब्द ये बच्चे है
चलना सिखलाया अपने पीछे
करते सम्मान ये बच्चे है

अगर बच्चे बच्चे ही रहते
फिर हिंदू होते न मुसलमान
सिक्ख इसाई जात न होती
सब समाधान ये बच्चे है

बच्चो को आपस मे न बातो
जाती धर्म के मार्गे न छांटो
देश काल की चाल फ़िर देखो
कैसी कुंजी ये बच्चे है................

पाठको से प्रार्थना है की क्या यह कविता किसी पाठ्यक्रम मे शामिल हो सकती है यदि हां तो कृपया उचित स्तर पर सहयोग व् सुझाव देने की कृपा करे.... मै आपका हमेशा आभारी रहूँगा...

कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"

कोई टिप्पणी नहीं: