रविवार, 3 अगस्त 2008

कस्मकस

मै कस्मकस की जिंदगी जी रहा था
बेसक में यु ही लुटा जा रहा था…..

कभी आगे पीछे कभी दाए बाए
इन्ही chand लम्हों का गीत गा रहा था………………..

अश्को में mere thi एक तब्बसुम
इसी की बजह से मै दारा जा रहा था…..

तस्बीह हाथो में लेकर मै यु ही
ओम शांती ओम शांती गुण गुना रहा था…….

कहानी थी ये एक सियासी baser की
इधर vo सभी को नसीहत दे रहा था….

मगर खौफ मन में जो बैठा था मेरे
सियासी मौहल्ले से गुबार आ रहा था……,.




कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"

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