मेरे दोस्त सुन लो मेरी इस जमी पर
न है कोई मंजिल तुम्हारे अलावा
रोती है धरती धरकते है ये दिल
मेरे दोस्त भारत की तुम लाज रखना
न थी कोई शिकवा न कोई शिकायत
जरूरत है मुझको तुम्हारी इनायत
बतन की जमी मे मै पैदा हुआ हूँ
तुम्हारे सहारे बढा जा रहा हूँ
पीया लहू बतन की इस जमी ने
शहीदों ने मिलकर जवानी लुटा दी
तुम्हे छोरकर मै बिदा ले रहा हूँ
batan की ये डोरी तुम्हे दे रहा हूँ
बतन के जवानो बतन का ये झंडा
बतन की जमी से निकलने ना पाए
खुदा मेरी धरती की तुम लाज रखना
बतन के जवानो के सर ताज रखना
आये न दुःख दर्द मेरी इस जमी पर
जमी को हमारी तुम खुशहाल रखना ..........
कैलाश खुलबे " वशिष्ठ"
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