बदल गए तरप तरप के dil यहाँ हजार के
दे गए वो जान अपनी भारत माँ पुकार
के लुटी थी माँ बहिन की लाज सर लुटे सिंदूर के
पुत्रहीन हुए माँ बाप बच्चे अनाथ वीर के
कसम ली हर जवान ने कसम ली हर किशान
ने निचे नहीं झुकेंगे हम कसम ली हर इंसान ने
लुटे यहाँ घरबार भी लुटे यहाँ सुहाग भी
लुटी बहिन की लाज और लुटा यहाँ जहां भी
जिधर नजर घुमाई थी गावं घर बिरान थे
जिधर खरे थे देश भक्त उधर बने शमसान थे
नदिया बही थी खून की आंधी थी ये जूनून की
रोटी हुई ये भारत माँ लिपटी हुई थी खून स
ये अर्थी न थी शहीद की अर्थी थी ये जहान् की
ओरा कफ़न था देश ने अर्थी थी हिन्दुस्तान की
गुलाम थे अंग्रेज के कब्जा किये थे शान से
शहीद की अर्थी भी तब लौटी थी उस शमसान से
जला सके न हम उन्हें अर्थी थी जो शहीद की
दो गज जमीं भी न मिली हमको इस जहान् में
सोचो अगर हम आज भी होते गुलाम अंग्रेजो
हर दिल दफ़न होते यहाँ बीके होते शरीर से
भुला दो उस जज्बात को भुला दो उस सौगात को
दरार जिस दिवार में हटा दो उस दिवार को ....
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठको स अनुरोध है की यदि यह कविता किसी पाठ्यक्रम में शामिल की जा सकती है तो अपने सुझाव देने की कृपा करे....
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
बुधवार, 13 अगस्त 2008
मेरी कविता "बच्चे" [दुनिया के सभी बच्चौ के लिए तथा अपने pujyaniya माता पिता के नाम समर्पित]
ये बच्चे कितने अच्छे है
सारी दुनिया मे सच्चे है
भगवान् भी इनकी पुजा करते
प्यार का सागर बच्चे है
इनके कोई न अपने होते
सबसे ये करते है प्यार
नही जानते भेदभाव ये
करते नही ग़लत ब्यवहार
हिंदू मुस्लिम ये क्या जाने
सिक्ख इसाई ये ना जाने
राम रहीम को क्या पहचाने
निस्वार्थ भाव के बच्चे है
पाप पुण्य की बात को छोरो
अच्छा बुरा इनसे न जोडो
बैर भाव की बात दूर है
भविष्य देश का बच्चे है
अपना पराया जात पात सब
दुनिया की सौगात बात सब
हम सिखलाते इन्हें प्यार से
शिक्षा सब लेते बच्चे है
बात दिया हमने वर्गो में
मासूम शब्द ये बच्चे है
चलना सिखलाया अपने पीछे
करते सम्मान ये बच्चे है
अगर बच्चे बच्चे ही रहते
फिर हिंदू होते न मुसलमान
सिक्ख इसाई जात न होती
सब समाधान ये बच्चे है
बच्चो को आपस मे न बातो
जाती धर्म के मार्गे न छांटो
देश काल की चाल फ़िर देखो
कैसी कुंजी ये बच्चे है................
पाठको से प्रार्थना है की क्या यह कविता किसी पाठ्यक्रम मे शामिल हो सकती है यदि हां तो कृपया उचित स्तर पर सहयोग व् सुझाव देने की कृपा करे.... मै आपका हमेशा आभारी रहूँगा...
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
सारी दुनिया मे सच्चे है
भगवान् भी इनकी पुजा करते
प्यार का सागर बच्चे है
इनके कोई न अपने होते
सबसे ये करते है प्यार
नही जानते भेदभाव ये
करते नही ग़लत ब्यवहार
हिंदू मुस्लिम ये क्या जाने
सिक्ख इसाई ये ना जाने
राम रहीम को क्या पहचाने
निस्वार्थ भाव के बच्चे है
पाप पुण्य की बात को छोरो
अच्छा बुरा इनसे न जोडो
बैर भाव की बात दूर है
भविष्य देश का बच्चे है
अपना पराया जात पात सब
दुनिया की सौगात बात सब
हम सिखलाते इन्हें प्यार से
शिक्षा सब लेते बच्चे है
बात दिया हमने वर्गो में
मासूम शब्द ये बच्चे है
चलना सिखलाया अपने पीछे
करते सम्मान ये बच्चे है
अगर बच्चे बच्चे ही रहते
फिर हिंदू होते न मुसलमान
सिक्ख इसाई जात न होती
सब समाधान ये बच्चे है
बच्चो को आपस मे न बातो
जाती धर्म के मार्गे न छांटो
देश काल की चाल फ़िर देखो
कैसी कुंजी ये बच्चे है................
पाठको से प्रार्थना है की क्या यह कविता किसी पाठ्यक्रम मे शामिल हो सकती है यदि हां तो कृपया उचित स्तर पर सहयोग व् सुझाव देने की कृपा करे.... मै आपका हमेशा आभारी रहूँगा...
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
सोमवार, 11 अगस्त 2008
कुर्बानी
चन्द्र शेखर भगत सिंह
सुखदेव न होते तो
हमारा क्या होता
तुम्हे इस आजादी का
मतलब भी पता न होता
यह तो करिश्मा है
उधम सिंह जैसे
शहीदों की कुर्बानी का
वरना हमारा सर भी
उठाने के काबिल न होता............
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
सुखदेव न होते तो
हमारा क्या होता
तुम्हे इस आजादी का
मतलब भी पता न होता
यह तो करिश्मा है
उधम सिंह जैसे
शहीदों की कुर्बानी का
वरना हमारा सर भी
उठाने के काबिल न होता............
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
सोमवार, 4 अगस्त 2008
गम की धुन का नही “ हसी की धुन का संगीतकार हु मै”
गमे खाया गमे दिल का
दीदार हु मै
किसी गमें तमन्ना का
करजदार हु मै
हस भी नही सकता
रोने को मजबूर हु मै
इसी मजबूर सूरत का
करजदार हु मै
रुलाया भी नही इसने
इसका एक किरदार हु मै
अपने इस दिली आईने का
शुक्रगुजार हु मै
इसी गमे दिल से
रोने की हसी हँसा हु मै
हसाया है उसको भी मैंने
जिसका प्यार हु मै
हर कदम पर तरपते
दिलो की कतार हु मै
किसी गम दिल में
हसी की बहार हु मै
hasate हुए गमे दिलो की
पुकार हु मै
रोते हुए दिलो को
हसाती सरकार हु मै
गमो में भी हँसना सीखो
farmaaysi तरफदार हु मै
गम की धुन का नही
“ हसी की धुन का संगीतकार हु मै”
कैलाश खुलबे “ वशिष्ठ”
पाठक ध्यान दे …. बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे......
दीदार हु मै
किसी गमें तमन्ना का
करजदार हु मै
हस भी नही सकता
रोने को मजबूर हु मै
इसी मजबूर सूरत का
करजदार हु मै
रुलाया भी नही इसने
इसका एक किरदार हु मै
अपने इस दिली आईने का
शुक्रगुजार हु मै
इसी गमे दिल से
रोने की हसी हँसा हु मै
हसाया है उसको भी मैंने
जिसका प्यार हु मै
हर कदम पर तरपते
दिलो की कतार हु मै
किसी गम दिल में
हसी की बहार हु मै
hasate हुए गमे दिलो की
पुकार हु मै
रोते हुए दिलो को
हसाती सरकार हु मै
गमो में भी हँसना सीखो
farmaaysi तरफदार हु मै
गम की धुन का नही
“ हसी की धुन का संगीतकार हु मै”
कैलाश खुलबे “ वशिष्ठ”
पाठक ध्यान दे …. बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे......
रविवार, 3 अगस्त 2008
कस्मकस
मै कस्मकस की जिंदगी जी रहा था
बेसक में यु ही लुटा जा रहा था…..
कभी आगे पीछे कभी दाए बाए
इन्ही chand लम्हों का गीत गा रहा था………………..
अश्को में mere thi एक तब्बसुम
इसी की बजह से मै दारा जा रहा था…..
तस्बीह हाथो में लेकर मै यु ही
ओम शांती ओम शांती गुण गुना रहा था…….
कहानी थी ये एक सियासी baser की
इधर vo सभी को नसीहत दे रहा था….
मगर खौफ मन में जो बैठा था मेरे
सियासी मौहल्ले से गुबार आ रहा था……,.
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे .... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
बेसक में यु ही लुटा जा रहा था…..
कभी आगे पीछे कभी दाए बाए
इन्ही chand लम्हों का गीत गा रहा था………………..
अश्को में mere thi एक तब्बसुम
इसी की बजह से मै दारा जा रहा था…..
तस्बीह हाथो में लेकर मै यु ही
ओम शांती ओम शांती गुण गुना रहा था…….
कहानी थी ये एक सियासी baser की
इधर vo सभी को नसीहत दे रहा था….
मगर खौफ मन में जो बैठा था मेरे
सियासी मौहल्ले से गुबार आ रहा था……,.
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे .... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
संकल्प और मंजिल
हाथ में लेकर के दीपक
चल परा मै जिस डगर
हर डगर की मंजिलो तक
आध्हिया मिटती गई……
शहन में आया अगर
कोई बशर यह सोच के
पनाह दी उस शख्स को
और तिस्नगी मिटती गई……
दौर है ये एक घरी का
मानव मात्र के लिए
दौर ये चलता रहा
और कहानिया बनती गई………..
रोक पाया है न कोई
अब तलक उस शख्स को
जिसने ठानी मंजिलो की
उन्हें मंजिल मिलती गई…….
हौसला जो रखकर पीछे
मुर गए तो देख लो
हौसले मिटते गए और
biraanagi आती गई………………॥
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे..... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
चल परा मै जिस डगर
हर डगर की मंजिलो तक
आध्हिया मिटती गई……
शहन में आया अगर
कोई बशर यह सोच के
पनाह दी उस शख्स को
और तिस्नगी मिटती गई……
दौर है ये एक घरी का
मानव मात्र के लिए
दौर ये चलता रहा
और कहानिया बनती गई………..
रोक पाया है न कोई
अब तलक उस शख्स को
जिसने ठानी मंजिलो की
उन्हें मंजिल मिलती गई…….
हौसला जो रखकर पीछे
मुर गए तो देख लो
हौसले मिटते गए और
biraanagi आती गई………………॥
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे..... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
ऐसा न कभी सोचा था
इस कदर मिलेगी मौत
ऐसा न कभी सोचा था
जिंदगी की हर घरी को
सावन की तरह देखा था……………..
आयी थी बहार चमन मे
bahare tabbsum लेकर
हमने तो हर फुल को
कलियों की तरह देखा था………………
आया हमारी जिंदगी मे
जो कोई मेहमान बनकर
हमने तो हर शख्स को
मसीहा की तरह देखा था……………
आसियाने में हमारे कोई
आया अगर आसना बनकर
हमने तो उस शख्स को
शःन्साह की तरह देखा था…………….
मसरूफ थे हम हर घरी
अपनी दुनिया के वास्ते
कल इसी दुनिया को
अपना घर जलाते देखा था………………
पनाह दी जिस शख्स को
हमने आलमपनाह बनकर
आज उसी शख्स ने हमे
gairo की तरह देखा था………………
ऐसा जीना मौत से भी
बदतर है दोस्तों
आज मेने खुद को
अपनी अर्थी सजाते देखा था………………
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे .... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
ऐसा न कभी सोचा था
जिंदगी की हर घरी को
सावन की तरह देखा था……………..
आयी थी बहार चमन मे
bahare tabbsum लेकर
हमने तो हर फुल को
कलियों की तरह देखा था………………
आया हमारी जिंदगी मे
जो कोई मेहमान बनकर
हमने तो हर शख्स को
मसीहा की तरह देखा था……………
आसियाने में हमारे कोई
आया अगर आसना बनकर
हमने तो उस शख्स को
शःन्साह की तरह देखा था…………….
मसरूफ थे हम हर घरी
अपनी दुनिया के वास्ते
कल इसी दुनिया को
अपना घर जलाते देखा था………………
पनाह दी जिस शख्स को
हमने आलमपनाह बनकर
आज उसी शख्स ने हमे
gairo की तरह देखा था………………
ऐसा जीना मौत से भी
बदतर है दोस्तों
आज मेने खुद को
अपनी अर्थी सजाते देखा था………………
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे .... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
तोड़ दे अगर आज हम नफरत की ये दिवार समझो की बतन का हर जिगर समंदर हो गया…………………
मरसियों पर नाचता है
आज ये बतन देखो
कल ही तो इस बतन में सेहरा पढ़ा गया …….
जिगर की ये आवाज
पहुची है उस फलक में
जिस फलक की तस्वीर को कल पानी मे देखा गया………..
जेहाद है ये सिर्फ एक
कौमी बतन की एकता
कल ही तो इस कॉम को गले मिलते देखा गया………….
मशहूर था जो शख्स कल
बतन में सुकून के लिए
आज वाही शख्स फिर क्यों काफिर हो गया……………..
मर मिटा था सरजमी पर
हर एक बच्चा कल यहाँ
आज तो हर बुजुर्ग भी इसका दुसमन हो गया…………..
दीपक कभी जला यहाँ
न्याय व् आपसी प्रेम का
बतन ये आज अन्याय का समंदर हो गया…………..
लाये थे जिसको बिच से
साहिल में छोरने
वाही शख्स आज भटक कर लहरों का हो गया…………
तोड़ दे अगर आज हम
नफरत की ये दिवार
समझो की बतन का हर जिगर समंदर हो गया…………………
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे .... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
आज ये बतन देखो
कल ही तो इस बतन में सेहरा पढ़ा गया …….
जिगर की ये आवाज
पहुची है उस फलक में
जिस फलक की तस्वीर को कल पानी मे देखा गया………..
जेहाद है ये सिर्फ एक
कौमी बतन की एकता
कल ही तो इस कॉम को गले मिलते देखा गया………….
मशहूर था जो शख्स कल
बतन में सुकून के लिए
आज वाही शख्स फिर क्यों काफिर हो गया……………..
मर मिटा था सरजमी पर
हर एक बच्चा कल यहाँ
आज तो हर बुजुर्ग भी इसका दुसमन हो गया…………..
दीपक कभी जला यहाँ
न्याय व् आपसी प्रेम का
बतन ये आज अन्याय का समंदर हो गया…………..
लाये थे जिसको बिच से
साहिल में छोरने
वाही शख्स आज भटक कर लहरों का हो गया…………
तोड़ दे अगर आज हम
नफरत की ये दिवार
समझो की बतन का हर जिगर समंदर हो गया…………………
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे .... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे
शनिवार, 2 अगस्त 2008
सौभाग्य मेरी मात्रभूमि का यही बना रहे राष्ट्र एकता रहे हर कदम मिला रहे हर कदम में सत्य हो हर कदम में प्यार हो देश के लिए यहाँ हर कदम taiyar हो....
ये बतन ये जमी हम भुला न पायेंगे ..
हम बतन की राह पर सर कटा जायेंगे
जन्मभूमि कर्मभूमि ये हमारी मात्रभूमि
हम बतन है हमारे दिलो की दास्तान
जग उठी है हमारे दिलो की बंदगी
हिल उठी है पाप से ये हमारी जमी
जब कभी आन पर आंच कोई आएगी
मात्रभूमि देश भक्त को खरा पाएगी
सीच कर खून से इस जमी को कभी
देश भक्त ने यहाँ सर कटाया कभी
अंग्रेज भी हम बतन को झुका न पाये थे
शहीद देश भक्तो ने अपने सर कटाए थे
बज उठी है हमारे दिलो की घंटिया
सरफरोसी दिलो में थन चुकी है बाजियां
देश भक्त कर्मवीर सर नही झुकायेंगे
मात्रभूमि के लिए अपने सर कटायेंगे
सौभाग्य मेरी मात्रभूमि का यही बना रहे
राष्ट्र एकता रहे हर कदम मिला रहे
हर कदम में सत्य हो हर कदम में प्यार हो
देश के लिए यहाँ हर कदम taiyar हो......
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठको से प्रार्थना है की क्या यह कविता किसी पाठ्यक्रम मे शामिल हो सकती है यदि हां तो कृपया उचित स्तर पर सहयोग व् सुझाव देने की कृपा करे.... मै आपका हमेशा आभारी रहूँगा...
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
हम बतन की राह पर सर कटा जायेंगे
जन्मभूमि कर्मभूमि ये हमारी मात्रभूमि
हम बतन है हमारे दिलो की दास्तान
जग उठी है हमारे दिलो की बंदगी
हिल उठी है पाप से ये हमारी जमी
जब कभी आन पर आंच कोई आएगी
मात्रभूमि देश भक्त को खरा पाएगी
सीच कर खून से इस जमी को कभी
देश भक्त ने यहाँ सर कटाया कभी
अंग्रेज भी हम बतन को झुका न पाये थे
शहीद देश भक्तो ने अपने सर कटाए थे
बज उठी है हमारे दिलो की घंटिया
सरफरोसी दिलो में थन चुकी है बाजियां
देश भक्त कर्मवीर सर नही झुकायेंगे
मात्रभूमि के लिए अपने सर कटायेंगे
सौभाग्य मेरी मात्रभूमि का यही बना रहे
राष्ट्र एकता रहे हर कदम मिला रहे
हर कदम में सत्य हो हर कदम में प्यार हो
देश के लिए यहाँ हर कदम taiyar हो......
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
पाठको से प्रार्थना है की क्या यह कविता किसी पाठ्यक्रम मे शामिल हो सकती है यदि हां तो कृपया उचित स्तर पर सहयोग व् सुझाव देने की कृपा करे.... मै आपका हमेशा आभारी रहूँगा...
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
खुशहाली हर घर में हो हर घर में तेरा प्यार हो जनम ले हम फिर इस माती में चाहे जनम हजार [देव भूमि में bitaaye palo का ahsaas ]
शक्ति दो हे महामाई तुम हे माँ उत्त्राखंडा
तेरी ही ले चरण धूलि हम सब माँ उत्त्राखंडा
जनम जनम से माता हमने प्यार तेरा ही पाया
देव भूमि तू देवलोक है निर्मल तेरी काया
धर्मं करम में नहीं है पीछे यही है तेरा शाया
सदियों से इस देवलोक में स्वर्ग सा jiwan पाया
सृष्टि देव शिव, ब्रह्मा विष्णु शिवजी का शिवालय
हे माँ तेरा आँचल ही है हम सबका विधालय
पाया माता हमने तुझमे दुनिया भर का प्यार यहाँ
charan dhuli ले माता तेरी गंगा baate प्यार यहाँ
धर्मं करम और प्रेम भावः का हर घर में एक दीप जले
तेरा हर एक बच्चा बच्चा सचाई की aor बढे
यहाँ नहीं है झूठ फरेब और अन्यायी का डेरा
हर घर की तू शान है माँ हर घर में तेरा डेरा
हर घर में एक दीप है जलता माता तेरे नाम का
बच्चे बुधे माँ बहिनों के सत्यपूर्ण अरमान का
खुशहाली हर घर में हो हर घर में तेरा प्यार हो
जनम ले हम फिर इस माती में चाहे जनम हजार ..........
तेरी ही ले चरण धूलि हम सब माँ उत्त्राखंडा
जनम जनम से माता हमने प्यार तेरा ही पाया
देव भूमि तू देवलोक है निर्मल तेरी काया
धर्मं करम में नहीं है पीछे यही है तेरा शाया
सदियों से इस देवलोक में स्वर्ग सा jiwan पाया
सृष्टि देव शिव, ब्रह्मा विष्णु शिवजी का शिवालय
हे माँ तेरा आँचल ही है हम सबका विधालय
पाया माता हमने तुझमे दुनिया भर का प्यार यहाँ
charan dhuli ले माता तेरी गंगा baate प्यार यहाँ
धर्मं करम और प्रेम भावः का हर घर में एक दीप जले
तेरा हर एक बच्चा बच्चा सचाई की aor बढे
यहाँ नहीं है झूठ फरेब और अन्यायी का डेरा
हर घर की तू शान है माँ हर घर में तेरा डेरा
हर घर में एक दीप है जलता माता तेरे नाम का
बच्चे बुधे माँ बहिनों के सत्यपूर्ण अरमान का
खुशहाली हर घर में हो हर घर में तेरा प्यार हो
जनम ले हम फिर इस माती में चाहे जनम हजार ..........
Kailash Khulbe " vashishtha"
Paathak dhyaan de ..... bina anumati kahi anyatra prayog n kare........
आये न दुःख दर्द मेरी इस जमी पर , जमी को हमारी तुम खुशहाल रखना [ बतन या इस दुनिया से प्यार या खुशहाली की कामना करने वाले हर इन्सान को समर्पित]
मेरे दोस्त सुन लो मेरी इस जमी पर
न है कोई मंजिल तुम्हारे अलावा
रोती है धरती धरकते है ये दिल
मेरे दोस्त भारत की तुम लाज रखना
न थी कोई शिकवा न कोई शिकायत
जरूरत है मुझको तुम्हारी इनायत
बतन की जमी मे मै पैदा हुआ हूँ
तुम्हारे सहारे बढा जा रहा हूँ
पीया लहू बतन की इस जमी ने
शहीदों ने मिलकर जवानी लुटा दी
तुम्हे छोरकर मै बिदा ले रहा हूँ
batan की ये डोरी तुम्हे दे रहा हूँ
बतन के जवानो बतन का ये झंडा
बतन की जमी से निकलने ना पाए
खुदा मेरी धरती की तुम लाज रखना
बतन के जवानो के सर ताज रखना
आये न दुःख दर्द मेरी इस जमी पर
जमी को हमारी तुम खुशहाल रखना ..........
कैलाश खुलबे " वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे ... बिना अनुमति कही अन्यत्र प्रयोग न करे
न है कोई मंजिल तुम्हारे अलावा
रोती है धरती धरकते है ये दिल
मेरे दोस्त भारत की तुम लाज रखना
न थी कोई शिकवा न कोई शिकायत
जरूरत है मुझको तुम्हारी इनायत
बतन की जमी मे मै पैदा हुआ हूँ
तुम्हारे सहारे बढा जा रहा हूँ
पीया लहू बतन की इस जमी ने
शहीदों ने मिलकर जवानी लुटा दी
तुम्हे छोरकर मै बिदा ले रहा हूँ
batan की ये डोरी तुम्हे दे रहा हूँ
बतन के जवानो बतन का ये झंडा
बतन की जमी से निकलने ना पाए
खुदा मेरी धरती की तुम लाज रखना
बतन के जवानो के सर ताज रखना
आये न दुःख दर्द मेरी इस जमी पर
जमी को हमारी तुम खुशहाल रखना ..........
कैलाश खुलबे " वशिष्ठ"
पाठक ध्यान दे ... बिना अनुमति कही अन्यत्र प्रयोग न करे
शुक्रवार, 1 अगस्त 2008
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई.....[देश मे कौमी एकता बनाकर देश को आजाद करने के लिए जान देने वाले देश भक्स्तो को समर्पित]
देश भक्त का सच्चा व्रत है कर दे रक्षा साईं
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
चाहे बंगाली चाहे गुजराती चाहे तमिल हो भाई
चाहे कश्मीरी, चाहे बिहारी, चाहे मद्रासी भाई
एक देश है एक ही इश्वर सबका एक ही साईं
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
अंग्रजो से ट्रस्ट हुए जब देश me क्रांति आई
पत्नी माता और बहिन से छुटा हर एक भाई
देश के खातिर सबने मिलकर खून की नदी बहाई
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
देश भक्त थे सुभाष बोस और सरदार बल्लभ भाई
देश भक्ति के लिए जिन्होंने हसकर जान गवाई
मरते दम तक साथ न छोरा सभी थे भाई भाई
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
अंग्रजो को दौर भगाया बनाई एक मिशाल
फांसी के फंदे म झूले भारत के वे लाल
भारत माँ की गोद पले थे आपस me the भाई
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
गाँधी जी ने ज्योति जलाई छुआछूत भगाया
पंडित नेहरु शास्त्री जी ने आगे इसे बढाया
इंदिरा जी ने मेहनत करके पूर्णता इसमे पायी
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
चाहे बंगाली चाहे गुजराती चाहे तमिल हो भाई
चाहे कश्मीरी, चाहे बिहारी, चाहे मद्रासी भाई
एक देश है एक ही इश्वर सबका एक ही साईं
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
अंग्रजो से ट्रस्ट हुए जब देश me क्रांति आई
पत्नी माता और बहिन से छुटा हर एक भाई
देश के खातिर सबने मिलकर खून की नदी बहाई
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
देश भक्त थे सुभाष बोस और सरदार बल्लभ भाई
देश भक्ति के लिए जिन्होंने हसकर जान गवाई
मरते दम तक साथ न छोरा सभी थे भाई भाई
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
अंग्रजो को दौर भगाया बनाई एक मिशाल
फांसी के फंदे म झूले भारत के वे लाल
भारत माँ की गोद पले थे आपस me the भाई
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
गाँधी जी ने ज्योति जलाई छुआछूत भगाया
पंडित नेहरु शास्त्री जी ने आगे इसे बढाया
इंदिरा जी ने मेहनत करके पूर्णता इसमे पायी
हिन्दू मुस्लिम सिखा इसाई सभी है भाई भाई....
कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"
मेरी कविता "बच्चे" [दुनिया के सभी बच्चौ के लिए तथा अपने pujyaniya माता पिता के नाम समर्पित]
ये बच्चे कितने अच्छे है
सारी दुनिया मे सच्चे है
bhagwaan भी इनकी पुजा करते
प्यार का सागर बच्चे है
इनके कोई न अपने होते
सबसे ये करते है pyaar
नही jante bhedbhaw ये
करते नही ग़लत byawhaar
हिंदू muslim ये क्या jane
sikkh esaai ये ना jane
ram rahim को क्या pahchane
inswarth bhaw के बच्चे है
pap पुण्य की बात को chhoro
अच्छा बुरा इनसे न jodo
bair bhaw की बात दूर है
bhavisya देश का बच्चे है
अपना paraya जात paat सब
दुनिया की saugaat baat
हम sikhlaate enhai प्यार से
shiksha सब लेते बच्चे है
baant दिया हमने vergaun मे
maasum शब्द ये बच्चे है
chalnaa sikhlaya अपने pichhe
करते sammaan ये बच्चे है
अगर बच्चे बच्चे ही रहते
फ़िर हिंदू होते न musalmaan
sikkha esaae जात न होती
सब samaadhan ये बच्चे है
bachchou को aapas मे ना baato
जाती धर्म के marge न chhanto
देश काल की चाल फ़िर देखो
कैसी kunjee ये बच्चे है................
कैलाश khulbe "vashishth"
पाठक ध्यान दे.... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे.........
सारी दुनिया मे सच्चे है
bhagwaan भी इनकी पुजा करते
प्यार का सागर बच्चे है
इनके कोई न अपने होते
सबसे ये करते है pyaar
नही jante bhedbhaw ये
करते नही ग़लत byawhaar
हिंदू muslim ये क्या jane
sikkh esaai ये ना jane
ram rahim को क्या pahchane
inswarth bhaw के बच्चे है
pap पुण्य की बात को chhoro
अच्छा बुरा इनसे न jodo
bair bhaw की बात दूर है
bhavisya देश का बच्चे है
अपना paraya जात paat सब
दुनिया की saugaat baat
हम sikhlaate enhai प्यार से
shiksha सब लेते बच्चे है
baant दिया हमने vergaun मे
maasum शब्द ये बच्चे है
chalnaa sikhlaya अपने pichhe
करते sammaan ये बच्चे है
अगर बच्चे बच्चे ही रहते
फ़िर हिंदू होते न musalmaan
sikkha esaae जात न होती
सब samaadhan ये बच्चे है
bachchou को aapas मे ना baato
जाती धर्म के marge न chhanto
देश काल की चाल फ़िर देखो
कैसी kunjee ये बच्चे है................
कैलाश khulbe "vashishth"
पाठक ध्यान दे.... बिना अनुमति कही अन्यत्र उपयोग न करे.........