मंगलवार, 5 जून 2018

बाप बिहीन होते समाज में परिवार संस्कृति को जिन्दा रखने की मुहीम

बाप बिहीन होते समाज में परिवार संस्कृति को जिन्दा रखने की मुहीम

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पापा और बच्चो का रिस्ता ऐसा होता है
पापा रोटी है पापा कपडा है पापा मकान है पापा नन्हे से परिंदो का एक बड़ा आसमान है
पापा है तो हर घर में हर पल खुशियाँ है पापा है तो माँ की चूड़ी बिंदी और सुहाग है
पापा है तो बच्चो के सारे सपने है पापा है तो सारे बाजार के खिलोने अपने है
माँ के बारे में बहुत सारी किताबे और कानून लिखे गए है मगर पिता के लिए कुछ भी नहीं है माँ अच्छा बुरा सब कुछ बोल देती है मगर पिता कभी कुछ नहीं बोलता है हर दर्द परेशानी को दिल में दफ़न कर देता है पिता की जरुरत सभी को है मगर कोई यह भी तो सोचो की क्या पिता को भी किसी की जरुरत है एक बार इस गंदे नालायक दुश्मन पुरुष को अपने पिता भाई बेटे की जगह की जगह रखकर सोचो फिर समझ आएगा की आखिर ये पिता है कौन ??
अर्थात सबसे पहले पापा को सुरक्षित करने की जरुरत है पापा सुरक्षित है तो सब कुछ सुरक्षित है माँ बेटा बेटी पत्नी भाई बहन सभी को सुरक्षित भविष्य के लिए पापा की सुरक्षा नितांत जरुरी है उसमे सभी को अपना योगदान देना होगा बरना बर्तमान कानूनों के कारण ये समस्त समाज एक बाप बिहीन समाज बनने जा रहा है जिसका कारण केवल और केवल हम है समाज को स्वयं जागरूक होना होगा क्यों की हमारी सनातन संस्कृति शादी जैसे पवित्र बंधन को ७ जन्मो का अटूट बंधन की धारणा पर जीवित है डाइवोर्स एक अंग्रेजी संस्कृति से उपजा शब्द है और तलाक उर्दू शब्द मुगलकालीन सोच का परिचायक है जिसे हिन्दू मैरिज एक्ट में कुछ हिन्दू विरोधी मानसिकता के शासको द्वारा सजिसन डालकर हिन्दू धर्म की परिवार परंपरा को खत्म करने के लिए किया गया जिसके दुष्परिणाम समाज में दिखने लगे है सामाजिक न्याय की कमी और इन कानूनो के बहुत बड़े स्तर पर दुरूपयोग के कारण आज देश के परिवार न्यायालयों में जूठे केशो की बाढ़ आ गयी है जो की हमारी परिवार संस्कृति के विनाश का कारण बन रही है अगर इन क़ानूनी प्रावधानों को खत्म नहीं किया गया या इनका दुरूपयोग सख्ती से नहीं रोका गया तो हमारी भारतीय परिवार संस्कृति जो की पुरे विश्व में अनूठी है खत्म हो जाएगी पुरे विश्व में भारतीय परिवार ही एक ऐसी संस्था है जो कभी नहीं टूटती थी मगर आज इसके अस्तित्व पर खतरे के बदल मडरा रहे है समाज को स्वयं जागरूक होना होगा और सोचना होगा की अगर आपके पापा मम्मी भी ऐसा ही करते तो क्या होता सोचो .
एक और जरुरी बात की निचली अदालतों में जूठे केशो के इतनी भीड़ है की १-२ मिनट की सुनवाई में पूरी जिंदगी का फैसला कर देना चाहते है बकील जज और सरकार . अदालतों में न तो ठीक तरह से बैठने और केशो को सुनाने की जगह है और न ही स्टाफ या जज की पर्याप्त संख्या उसके ऊपर सर्कार ने तीन तलाक के मामलो के लिए भी बिना व्यबस्था के मुस्लिम महिलाओ के लिए भी परेशानी कड़ी कर दी है और यहाँ केवल और केवल लूट है न्याय नहीं है अदालतों में केशो के कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं है न ही कोई निश्चित समय सिमा है और न ही केशो के हिसाब से कोई फीस निर्धारित है जिसका जो मन आता है ले लेता है मजबूर इंसान अगर कोई वकील न कर सके तो एक पुलिस के सिपाही से लेकर महिला आयोग और यहाँ तक की वकील और जज साहब भी जेल जाने का ताना देते नहीं चूकते है यदि कोई महंगा वकील कर पाने में समर्थ नहीं है तो उसके द्वारा अदालती प्रक्रिया में चीटिंग होती है जबरदस्ती कही भी हस्ताक्षर करा लिए जाते है और सामने वाले बकील मनमाने समय और दिन में तारिक लेकर सुनवाई करवा लेते है क़ानूनी ज्ञान न होने के कारण यहाँ सामाजिक न्याय दूर तक दिखाई नहीं देता है कानून बनाने वालो ने कभी सामाजिक न्याय की इस स्थिति के बारे में नहीं सोचा होगा . शादी के बाद मायके वाले पुलिस से मिली भगत कर आपराधिक मुकदमे दर्ज कर घर में बेटी को बिठा कर गुजारा भत्ते की अच्छी खासी रकम डकार रहे है तथा समझौते के नाम पर जूठे मुकदमे की आड़ लेकर एक मोटी रकम फिरौती के तौर पर लड़के से मांगी जाती है और बच्चे कुंठित मानसिक जीवन जीने को मजबूर है
इंसान के साथ इससे बड़ा अन्याय हो ही नहीं सकता की एक सख्स की गलती और महिला के मायके वालो के बेबजह दखल और जूठे केशो के कारण दो घरो के अलावा छोटे छोटे बच्चे मानसिक कुंठा का शिकार हो रहे है जो की हमारे देश और इस दुनिया का भविस्य है ये एक प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था है इसे भी सजो कर रखने की जरुरत है तथा बाप बिहीन होते समाज के लिए कुछ कड़े कदम उठाने के जरुरत है
भारतीय परिवारों में ये एक सामान्य संस्कार हर घर माँ बाप बच्चो को देते है की बेटे कुछ पढ़ो लिखो और नौकरी करो ताकि अपने बीबी बच्चे ठीक से पाल सको और उनके सहारे बूढ़े माँ बाप का भी बुढ़ापा कट सके मगर आज शादी के बाद जो देखने को मिलता है उसे देखकर आने वाले बच्चो के भविष्य की कल्पना की ही नहीं जा सकती है
मेरा माननीय सुप्रीम कोर्ट से , माननीय राष्ट्र पति महोदय से , माननीय प्रधान मंत्री महोदय से तथा माननीय कानून मंत्री महोदय से निवेदन है की जनहित व सामाजिक न्याय को मद्देनजर रखते हुए इस विश्व की सबसे बड़ी संथा [परिवार] सबसे महान संस्कृति [परिवार] और इस दुनिया और प्रकृति का आधार  परिवार ] को बचाने के लिए मेरी इस प्रार्थना को जनहित याचिका के तौर पर लेने की कृपा करे और इसके बृहद दुष्प्रभावों को देखते हुए इस पर कार्यवाही करने की कृपा करे तथा एक अनुभवी सरकारी अधिवक्ता के जरिये इसे सुनकर कुछ जरुरी क़ानूनी प्रावधान करने की दिशा में कार्यवाही करने की महती कृपा करे 
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