सोचो अगर हम आज भी होते गुलाम अंग्रेजो के, हर दिल दफ़न होते यहाँ बीके होते शरीर से, भुला दो उस जज्बात को भुला दो उस सौगात को, दरार जिस दिवार में हटा दो उस दिवार को ...., कैलाश खुलबे "वशिष्ठ"